Jr.sanskrit IMP questions and grammar \ సంస్కృతము

 Jr.sanskrit\ సంస్కృతము


  पध्यभाग:-


  1.भर्तृहरिसुभाषितानि                             6marks


Introduction: The following poem is taken from the lesson Neetishataka of Bhartruhari Shubhashitani written by Bhartruhari, For all these poems. There is no relation between one and each other. Hence these are called as MUKTHAKA.



1) अज्ञ: सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ: |

       ज्ञानलवदुर्विदग्धं  ब्र​ह्मापि  नरं न रञ्जयति ||

भाव: (summary)


                      We  can  please an ignorant  easily. An intelligent can be pleased more easily. But it is highly impossible to please half minded person even by the creator.


                            ఏమీ తెలియని వానికి చెప్పవచ్చు.  అంతయూ  తెలిసినవానికి చెప్పవచ్చు. కాని తెలివి తక్కువ ఉన్నవానికి ఆ బ్రహ్మ కూడా చెప్పలేడు.   



3) परिवर्तिनि संसारे मृत​: को वा न जायते ।

        स जातो येन जातेन याथि वंश​: समुन्नितिम्॥


भाव: (summary)


          In the ever changing world, death and birth are continuously happening and are common. But one who brings glory to his family is worthy of living as human.

                    ప్రతి రోజూ పరివర్తనం చెందుచున్న ఈ భూమిపై ఎవరు  పుట్టరు. మరియు ఎవరు చావరు. ఎవని పుట్టుకచే తన వంశమునకు పేరు, వన్నెలు వచ్చునో అతడే సార్థకుడు.  



6) दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।

       यो न ददाति न भुंक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ||


भाव: (summary)                    Money has to be spent only in three ways.

  1. Through Donation 

  2. Through Enjoyment or

  3. It should get perished

    If one doesn’t donate or spend the money for his enjoyment, he will have to face the third option.


            డబ్బుకు 3 మార్గములు కలవు. 1) దానం చేయుట, 2) అనుభవించుట, 3) నాశనము చెందుట.  ఏ  వ్యక్తి అనుభవించడో  దానం చెయ్యడో వానికి మూడవది కలుగును. అంటే నాశనము అవుతాడు.


7)   दुर्जन​: परिहतव्यो विध्यायाऽलंकृतोऽपि सन् ।

        मणिनालंकृत​: सर्प​: किमसौ न भयन्कर​:॥


भाव: (summary)          A wicked person should always be avoided though he is well educated.

Just as snake, which has a diamond on its head is dangerous. 

    

                      దుష్టులకు చదువు ఉన్నప్పటికీ కూడా దూరంగా ఉంచవలెను. వాడు ఎల్లప్పుడూ ప్రమాదమే. 

ఏవిధంగా అనగా తలపై వజ్రము ఉండే పాము చాలా భయంకరమే  కదా  ఏ వ్యక్తి దానిని తీసికొనుటకు  ఇష్టపడడు. 




8)  संपत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम्।

    आपत्सु च महाशैलशिलासंघातकर्कशम्॥

 

भाव: (summary)

             A noble man becomes as delicate as a lotus flower on getting wealth and he turns as strong

as a rock during tough times.

                  

                    మహాత్ముల యొక్క మనసు సంపదలు కలిగినప్పుడు పూవువలె  మొత్తంగా మరియు ఆపదలు కలిగినప్పుడు పెద్ద కొండలోని బండరాయివలె కఠినముగా ఉండును.





2. रामो विग्रहवान् धर्म:


6marks — वाल्मीकि महर्षिः 


Introduction:- The lesson रामो विग्रहवान् धर्म: is taken from Balakanda of Ramaayana written by great poet Valmiki who is regarded as Adikavi. Once the ascetic Valmiki in order to overcome his depression was asked by Narada to write a Kavya. 



 —> सन्दर्भवाक्यानि :-


  1. पूर्वां  दत्तवरा देवी वरमेनमयाचत |

ज.      कविपरीचय :-     सुप्रसिद्धमहाकवि वाल्मीकि विरचितं|

  पाठ :-                  रामो विग्रहवान् धर्म:|

 ग्रन्थ :-               रामायणं |

 सन्दर्भ :-           बलकाण्डस्य  प्रथम  सर्गे नारद: एवं अवदत्  | 

भाव :-             पूर्वां  दत्तवरा कैकेयी दशरथं  एवं वरं  अयाचत 

इति अर्थ: |



2.         तं व्रजन्तं प्रिये भ्राता  लक्ष्मणोऽनुजगाम  ह |

ज.  कविपरीचय :-      सुप्रसिद्धमहाकवि वाल्मीकि विरचितं|

   पाठ :-              रामो विग्रहवान् धर्म:|

   ग्रन्थ :-               रामायणं |

 सन्दर्भ :- बलकाण्डस्य  प्रथम  सर्गे नारद: एवं अवदत्  | भाव :- भ्राता लक्ष्मण: वनं  व्रजन्तं रामं अनुजगाम इति अर्थ: |


3.     रक्षसां निहतान्यासन् सहस्त्राणी  चतुर्दश |

ज.      कविपरीचय :- सुप्रसिद्धमहाकवि वाल्मीकि विरचितं |

  पाठ :-             रामो विग्रहवान् धर्म:|

 ग्रन्थ :-              रामायणं |

 सन्दर्भ :-     बालकाण्डस्य  प्रथम  सर्गे नारद: एवं अवदत् | 

भाव :- चतुर्दश  सहस्त्राणी  रक्षसां निहतानि आसन् इति

अर्थ:|


—> लघुसमाधानाप्रश्ना:

1. महीपतिः  दशरथ:   किं कर्तुम्  एच्छेत ? 

    ज)  महीपति: दशरथ: रामं अबिषेक्तुं एच्छेत्  |  

2. भरत: रामं किमिति वचोऽब्रवीत् ? 

ज) भरत: रामं  त्वमेव राजा धर्मङ: इति वच: अऽब्रवीत् |

3. जनस्थने रामेण का विरूपिता अभवत् ? 

ज)  जनस्थाने  रामेण शूर्पणखा  विरूपिता अभवत् |


—> एकवाक्यसमाधानाप्रश्ना:

  1.  गृह: क: ?  

    ज)  गृह: निषदाधिपति: |  

  1. राम: कस्य शासानात्  चित्रकूटे न्यवसत् ? 

ज) राम:  भरद्वाजस्य  शासनात् चित्रकूटे न्यवसत् |

  1.  भरत: कुत्र राज्यमकरोत् ? 

ज)   भरत:  नन्दिग्रामे  राज्यमकरोत् |


5- "गानपरीक्षा” 


 6 Marks       श्रि सन्निधानं सुर्यनरायणशास्त्री 

Introduction:  The lesson ‘गानपरीक्षा’ is taken from the book ‘poornapatra’ written by Sannidhanam Suryanarayana Shastri (Modern poet). The Writer is well versed in telugu and sanskrit  language. He was more than 45 books in both the languages to his credit.


सन्दर्भवाक्यानि:-


1. ततो विहाय मां  गत्वा वैकुण्ठं पृच्छतं  युवाम् |


ज)  कविपरीचय :-      सुप्रसिद्ध कवि श्रि सन्निधानं 


                             सूर्यनारायण शास्त्रिणा विरचितं|


पाठ :-            गानपरीक्षा 

ग्रन्थ :-               पूर्णपात्रम् |

सन्दर्भ :-           ब्रह्मा  तुंम्बुरं एवं अवदत्  | 

भाव :-   हे  तुम्बुर !  मां  विहाम  वैकुण्ठं  गत्वा भगवान् विष्णुं युवां पृच्छत, यत: नारदः  मम पुत्र: इति अर्थ: |


2.  ज्ञातुं ते खलु मुख्योयं भक्तेषु मम नारद: |


ज)  कविपरीचय :-      सुप्रसिद्ध कवि श्रि सन्निधानं


                            सूर्यनारायण शास्त्रिणा विरचितं|


पाठ :-            गानपरीक्षा 

ग्रन्थ :-               पूर्णपात्रम् |

सन्दर्भ :-           विष्णु:  तुंम्बुरं एवं अवदत्  | 

भाव :-       हे  तुम्बुर !  मम भक्तेषु अयं नारद:

मुख्य: ते ज्ञातुं खलु इति अर्थ: |



3.  स्थण वोङ्कुरिता येन प्रद्रुता अभवन् शिला: |


ज)  कविपरीचय :-  सुप्रसिद्ध कवि श्रि सन्निधानं सूर्यनारायण


                         शास्त्रिणा विरचितं|


पाठ :-            गानपरीक्षा 

ग्रन्थ :-             पूर्णपात्रम् |

सन्दर्भ :-          पाठे  अस्मिन् कवि: एवं अवदत्  | 

भाव :-             हनुमतः गानेन शिला: अपि पद्रुता:

                  (द्रविभूता:) आसन्  इति अर्थ: |


—> लघुसमाधानाप्रश्ना:

—> लघुसमाधानाप्रश्ना:              2 Marks


1.नारद - तुम्बुरौ  परस्परं निन्दन्तौ  किं अकुरुताम् ?


ज)  नारद तुम्बरौ  परस्परं निन्दन्तौ विरिंचि  गत्वा, आवयोः


तारतम्यं निर्णायितां  इति अयाचतां |


2.    विष्णु:  नारदतुम्बुरौ  कं  प्रति गन्तुं आज्ञप्तवान् ?


ज)   विष्णु:  नारदतुम्बुरौ  हनुमन्तं  प्रति गन्तुं आज्ञप्तवान् |


3.   नारदः  कीदृशः इत्येव गण्य:  स्यात् ?

ज)   नारद: ज्यायान् इत्येव गण्य:  स्यात्  |



—> एकवाक्यसमाधानाप्रश्ना: 1 Mark 1. सुरागायनौ  कौ ?


 ज)   सुरागायानौ नारदतुम्बुरौ |


 2. तुम्बुर !  मे नारद: पुत्र: इति क: अवोचत् ?


ज)   तुम्बुर !  मे नारद: पुत्र: इति विधाता अवोचत् |


3. मूनिद्वन्द्वं कीदृशम्  आञ्जनेयम्  ऐक्षिष्ट ?


ज)  मूनिद्वन्द्वं  तपोणिष्ठं  आञ्जनेयम्  ऐक्षिष्ट | 




गध्यभाग:


4. दयालु: दानाशील: नागार्जुन: 

6Marks             — पि.वि. काणे


Introduction:- The lesson दयालु:  दानाशील: नागार्जुन: is taken from संस्कृतगद्यावलि: written by P.V.Kane. P.V.Kane has good command on English, Marati, Sanskrit and Hindi.

Among the books he has written ‘History of Dharmashastra’ in English is very popular.

He was also MP(Rajyasabha)from 1953 to 1959. 


—> सन्दर्भवाक्यानि


  1. किं त्वं  साम्प्रतं प्राजापतिं  जेतुमुध्यत: |


ज.     कविपरीचय :- सुप्रसिद्ध महापंडित  पि.वि.काणे महोदयेन  विरचितं |

  पाठ :-                 दयालु:  दानाशील: नागार्जुन: |

  ग्रन्थ :-                 संस्कृतगध्यावलि: |

  सन्दर्भ :- (इन्द्रस्य वचनं ) अश्विनौ नागार्जुनं एवं अवदत्  | 

 भाव :- हे  नागार्जुन ! साम्प्रतं  प्रजापतिं त्वं जेतुं उद्यत: 

किं  इति अर्थ:


2.   “आयुष्मान् ! यौवरज्यं प्राप्य किं मृषाहृष्यति |


ज) कविपरीचय :-    सुप्रसिद्ध महापंडित  पि.वि.काणे

महोदयेन  विरचितं |

  पाठ :-                  दयालु:  दानाशील: नागार्जुन: |

  ग्रन्थ :-                 संस्कृतगध्यावलि: |

  सन्दर्भ :-             धनपरा  जीवहरं  एवं अवदत्  | 

भाव :-      हे  पुत्र ! आयुष्मन् भव ! किं यौवरज्यं

प्राप्य तृप्यसि ?

 

3. न कोऽप्यर्थि मतो विमुखो याति ? 


ज. कविपरीचय :-  सुप्रसिद्ध महापंडित  पि.वि.काणे महोदयेन 

विरचितं |

  पाठ :-                 दयालु:  दानाशील: नागार्जुन:|

  ग्रन्थ :-                 संस्कृतगध्यावलि:|

  सन्दर्भ :-           नागार्जुन: राजानं चिरायुं एवं अवदत्  |

भाव :- न क: अपि अर्थी  मत्त: विमुख: याती किमपि

प्राप्नोति एव इति अर्थ:|


—> लघुसमाधानाप्रश्ना: 2 Marks


1. मन्त्री नागार्जुन: कीदृश: ?


ज)  मन्त्री नागार्जुन: दयालु: दानशील:  विज्ञानवान्  च |


2. नागार्जुनं  प्रति इन्द्र: कौ प्रेषितवान्  ?


ज)  नागार्जुनं  प्रति इन्द्र: अश्विनौ प्रेषितवान्  |


3. रज्यलोभ: कम् अतिवर्तते ? 

ज)   रज्यलोभ: मनुष्याणां मध्ये  बन्धवस्नेहम्  अतिवर्तते |


—> एकवाक्यसमाधानाप्रश्ना:                             1 Mark


1. चिरायु: भूपते: मन्त्री क: ?


ज)  चिरायु भूपते: मन्त्री नागार्जुन: |


2. क:  राजानम्  आत्मानं  च विरजौ चिरजीवितौ अकरोत्  ?


ज)  नागार्जुन: राजानम्  आत्मानं च विरजौ चिरजीवितौ अकरोत्  |


3. चिरायु:  कं  यौवराज्ये  अभिषिक्तवान् ? 


ज)   चिरायु:  स्वपुत्रं जीवहरम् यौवराज्ये  अभिषिक्तवान्  |



4.शराणागतरक्षणम्     

6 Marks —के. एल.वी.शास्त्री


Introduction:- The lessonशराणागतरक्षणम् “ is taken from the Samskruthatruteeya Darsha.

Written by KLV Shastri (modern poet). He was the professor in Presidency COllege Chennai.

He even got the title Mahopadyaya.       


 —> सन्दर्भवाक्यानि


1.  राजन् बुभुक्षा मामत्यन्तं पीडयति | 

ज.     कविपरीचय :-    सुप्रसिद्ध महापंडित के.एल्.वी. शास्त्री 

महोदयेन  विरचितं |

  पाठ :-                शरणागतरक्षणम्  |

  ग्रन्थ :-                 संस्कृततृतीयादर्श: |

  सन्दर्भ :-           श्येन: राजानं शिबिं एवं अवदत्  | 

भाव :-            हे  राजन् !  मां  बुभुक्षा अत्यन्तं पीडयति

इति अर्थ:|


2.  शरानगतस्य परिपालनमेव  राज्ञ:  प्रथमो धर्म: |

ज.    कविपरीचय :-    सुप्रसिद्ध महापंडित के.एल्.वी.

शास्त्री  महोदयेन  विरचितं |

  पाठ :-                शरणागतरक्षणम्  |

  ग्रन्थ :-                 संस्कृततृतीयादर्श: |

  सन्दर्भ :-            शिबी:  श्येनं एवं अवदत्  | 

भाव :-       हे विहागोत्तम ! राज्ञ: प्रथम: धर्म: तावत्

शरणागतपरिपालनमेव इति अर्थ: |


3.  सत्यं  दयालुरेवासि | 

ज.   कविपरीचय :-      सुप्रसिद्ध महापंडित के.एल्.वी.

शास्त्री  महोदयेन विरचितं |

  पाठ :-                शरणागतरक्षणम्  |

  ग्रन्थ :-                 संस्कृततृतीयादर्श: |

सन्दर्भ :- दिव्यरूपधरौ वासवानलौ शिबिं एवं अवदत्  | 

भाव :-  हे  राजन् ! सत्यं भवान् दयालु: एव असि इति

अर्थ:|


—> लघुसमाधानाप्रश्ना: 2 Marks


1.राजा विहगोत्तमं श्येनं  किमिति अब्रवीत् ?


ज)    राजा विहगोत्तमं श्येनं “  अयं कपोत: रक्षार्थं मामुपागत: | शरानागतस्य

     

 परिपालनमेव  राज्ञ: प्रथम: धर्म: इति  अब्रवीत् |


2. राजन्यपुत्री शिबे: भार्या किमकरोत्  ?


ज)    राजन्यपुत्री शिबे: भार्या तस्य दक्षिण  भागात्  मांसं  आदाय तुलां आरोपयत् |


3. दिव्यारुपधरौ  श्येनकपोतौ कौ  ? 


ज)     दिव्यारुपधरौ  श्येनकपोतौ वासवानलौ  |



—> एकवाक्यसमाधानाप्रश्ना: 1 Mark


1.श्येन:  कं  अन्वधावत् ?


ज)   श्येन: कपोतं अन्वधावत् |



2. विहागोत्तम:  क: ?


ज)    विहागोत्तम: शेयन: |



3. नभस्त: का पपात ? 


ज)    नभस्त: पुष्पवृष्टि: पपात |




               व्याकरणम् (Grammar)


              सन्धय:          8 + 8 = 16 Marks     


  1. सवर्णदीर्घसन्धि:

अक: सवर्णे दीर्घ: ( अक: सवर्णे अची परे पूर्वपरयोः दीर्घा एकादेश: स्यात् )

 उदाहरण:-        गजा +  आनन: =  गजानन:       { अ + आ = आ }

विद्या + आलय: =  विद्यालय:

  विद्या + अर्थि    = विद्यार्थी 

  कवि + इन्द्र:    = कवीन्द्र:                      {  इ +  इ =  ई  }

  कापि + ईश्वर:  = कपीश्वरः

  वाणी + ईश:   =  वाणीश:

उदाहरण:-           गुरु + उपदेश : = गुरुपदेश:         {  उ +  उ =  ऊ }                         साधु + ऊचु:   =   साधूचु:

          वधू + ऊह    =  वधूह:

{ ऋ + ऋ =  ऋ }           धतृ + ऋणम्  =  धातृणम्    

2.  गुणसन्धि:-


आद् गुण: ( आवर्णद सवर्णे अचि  परे पूर्वपरयोः गुण  एकादेशः  स्यात् )


उदाहरण:-         नर + इन्द्र:  = नरेन्द्र:   { अ,आ + ई = ए }

                       परम + ईश: = परमेश:

       गङ्गा + इति  =  गङ्गेति 

    माता + ईदृशी = मातेदृशी   { अ,आ + उ = ओ }  

     गुण + उत्तमा: = गुणोत्तम:

महा + उत्सव: = महोत्सवः

  मम + ऊह: =  ममोह: 

  राजा + ऋषि: = राजर्षी:  { अ + रु = अर् }        

महा + ऋषभः = महर्षभ:

    तव + लृकारः = तवल्कार:  { अ + लृ = अल् }


3. वृध्दिसन्धि:- वृद्धिरेचि

(आदेचि  परे वृधिरेकदेश: स्यात्)

उदाहरण:-  { अ +  ए = ऐ }          मम + एव = ममैव

                          तथा + एव = तथैव 

{ अ + ऐ = ऐ }            परम + ऐश्वर्यम् =  परमैश्वर्यम्

                            महा + ऐक्यता = महैक्यता 

{ आ + ओ= औ }          दिवा + ओकस: = दिवौकसः 

{ अ + औ = औ }          नव +  औषधम्  =  नवौषधम्

            महा + औषधिः =  महौषधि: 


4. याणादेशसन्धि:-   इको यणचि

( इक: स्थाने यण्  स्यादचि परे )

उदाहरण:-  { इ + अ = य }     प्रति + अहम्  =  प्रत्यहम्

                      इति + अन्वयः =  इत्यन्वय:

{ इ + आ = या }       प्रति + आगमनम् =  प्रत्यागमनम् 

            अभि + आगत: = अभ्यागत:

{ इ + उ = य }     प्रति + उपकार: = प्रत्युपकारः 

        अभि + उन्नति:  = अभ्युन्नति:   

उदाहरण:-  { इ + ए = ये }            यदि + एवम् =  यद्येवम्

                              वाणी + एका = वाण्येका

{उ + अ =  व}       अनु +  अगच्छत् = अन्वगच्छत्

{उ + अ = वा}       सु + आगतम् = स्वागतम्

{उ + ए = वे}         ननु + एष: =  नन्वेष:

{ऋ + अ = र}        धातृ + अंश: = धात्रांश:

{ऋ + आ = रा}      मातृ + आज्ञा =  मात्राज्ञा


शब्दरूपाणि:- (This pattern is similar to all sabdhas) 8Marks

अकारान्तः पुंलिङ्गे राम शब्दः   { rama , రాముడు } 

 विभक्ति:      एकवचनम्             द्विवचनम्           बहुवचनम् 

प्रथमा राम:           रामौ              रामाः 

संबोधन हे राम हे रामौ                हे रमा:

द्वितीया रामम्   रामौ     रामान् \नि\णि

तृतीया रामेण\न    रमाभ्याम्     रामै:

चतुर्थी रामाय   रमाभ्याम् रामेभ्य:

पञ्चमी रामात् रमाभ्याम्     रामेभ्य:

षष्ठी रामस्य     रामयो:   रामाणाम्

सप्तमी रामे\याम्\न्     रामयो:                रामेषु\सु  



                धातुरूपाणि                  6Marks

[ This pattern is similar to all dhatu’s ]


भू धातुः लट् लकार: (वर्तमाने काले, present tense)

 पुरुष:        एकवचनम्        द्विवचनम्        बहुवचनम्

प्रथमपुरुष: भवति   भवतः    भवन्ति 

मध्यमपुरुष:   भवसि   भवथ:   भवथ 

उत्तमपुरुष: भवामि        भवावः भवामः  


 पान धातुः लङ्  लकार: (भूत काले, past tense)

 पुरुष:     एकवचनम्       द्विवचनम्      बहुवचनम् 

प्रथमपुरुष: अपिबत्     अपिबताम्   अपिबन्  

मध्यमपुरुष:   अपिब: अपिबतम् अपिबत 

उत्तमपुरुष: अपिबम्        अपिबाव     अपिबाम


 दृशिर् धातुः लोट् लकार: (भविषत् काले, Future tense)

 पुरुष:    एकवचनम्        द्विवचनम्        बहुवचनम् 

प्रथमपुरुष: पश्यतु\पश्यतात्   पश्यताम्      पश्यन्तु   

मध्यमपुरुष: पश्य\पश्यतात् पश्यतम्     पश्यत

उत्तमपुरुष:   पश्यानि      पश्याव   पश्याम



 दृशिर् धातुः लोट् लकार: (भविषत् काले, Future tense)

 पुरुष:      एकवचनम्      द्विवचनम्      बहुवचनम् 

प्रथमपुरुष: पश्यतु\पश्यतात्     पश्यताम्      पश्यन्तु   

मध्यमपुरुष:  पश्य\पश्यतात् पश्यतम्       पश्यत

उत्तमपुरुष:   पश्यानि पश्याव     पश्याम


 करणे धातुः लृट् लकार: (भविषत् काले, Future tense)

 पुरुष:     एकवचनम्       द्विवचनम्       बहुवचनम् 

प्रथमपुरुष:    करिष्यति      करिष्यत:     करिष्यन्ति   

मध्यमपुरुष:   करिष्यसि     करिष्यथ: करिष्यथ 

उत्तमपुरुष: करिष्यामि     करिष्याव:   करिष्याम:





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